क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय

यह उत्तराध्यान आगम का छटा अध्याय है और इसकी 18 गाथाएं है,प्रभु महावीर ने निर्वाण से पूर्व प्रवचन करते हुये विद्या और ग्यान में अन्तर बतलाया है कि सांसारिक विद्या जीव को मुक्ति नहीं दिलवा सकती और ग्यान भी आचरण के बिना शून्य है।

साधक को समझा रहें है कि अपने कृत कर्मों से माँ-बाप, भाई-बहन,पति/पत्नि,हट-हवेलियां एवं अन्य प्रकार के साधन भी मुक्ति नहीं दिलवा सकती। आत्म चिंतन ही मुक्ति का साधन है।

माया पिया ण्हुसा भाया,भज्जा पुत्ता य ओरसा। नालं ते मम ताणाय,लुप्पन्तस्स सकम्मणा।।

क्षुल्लक साधुता के बाह्याचार, और जैन दिगाम्बर परम्परा मे वैराग्य और साधु के बीच की अवस्था है,श्वेताम्बर (मन्दिर मार्गीय और स्थानकवासी) परम्परा में वैराग्य से सीधा पाठ पढ़ाकर, उसे छोटी दीक्षा और कुछ दिनोॆ के बाद पाठ पढ़ाकर साधु कहा जाता है। निर्गन्थ केवल जैन साधुओं को ही कहा गया है कि किसी प्रकार के वैर-विरोध से पड़ी हुयी गांठे न रखें, यहां तक किसी सन्त को स्वप्न में किसी से कुछ कहा-सुनी हो गई है तो वह सुबह उठते ही पहले उस से क्षमायाचना करें, फिर मल विसर्जन एवं लघु-शंका के लिये प्रस्थान करे जिससे मन में गांठ न रहे, आजकल देश में खुलें में मल विसर्जनीय अपराध है, सन्त को भी राज्य व्यवस्था का सम्मान करना है।

अग्य कौन है और विद्वान कौन, जो दुःख के मूल कारण को न समझे या समझते हुए भी उससे मुक्त होने का प्रयास न करे वह अग्यानी है और विद्वान भी नहीं।

मूंड- मुंडाये तीन गुण, सिर की मिट गई खाज, खाने को लड्डू मिले लोग कहें महाराज ।।

जो ग्यान को आचरण में लाये वही विद्वान है, सांसारिक विद्या से विवेकहीन होना अग्यान है। इस अन्तहीन संसार में साधु को अपने चारों ओर सावधान होकर चलना है।

साधु जीवन कठिन है, जैसे पेड़ खजूर, चड़े तो चाखे प्रेम रस, गिरेे तो चकनाचूर ।।

अविद्या का अर्थ है सत्य के विपरीत नालेज, अविद्या चार प्रकार की होती है , अनित्य में नित्य की अनभूति, यौवन, तन, मन, धन, स्वजन, स्नेही, मित्र, घर, भौतिक सुख -सम्पदा को नित्य मानना ही अविद्या है।

अशुचि में शुचि की अनुभूति, शरीर स्वयं अशुद्ध है, इसकी उत्पति अशुद्ध पदार्थों से हुई है, फिर भी इसको शुद्ध समझऩा अविद्या है।

स्त्री और परिग्रह का मोह जाल में रहना दुःख का कारण में सुख समझना ही अविद्या है ।

जो वस्तु परलोक में जाने वाली नहीं, उस को अपना समझऩा ही अविद्या है ।

विद्या वही है जो आठों कर्मों से मुक्त करवाए। भावना में शुक्ल लेश्या रहें कि अन्तिम समय संथारा हो जाय। क्रोध में मरण -मारन तक आए कृष्ण लेश्या, झूठ -चोरी नील लेश्या, काम-वासना में लिप्त कामुक्ता, तप करने की भावना तेजो लैश्या, पद्म लेश्या, वैर-विरोध तजना शुक्ल लश्या में पहुंचने का भाव है।

नमि प्रवज्या

On Fri, 10 Nov, 2023, 15:00 Swatantar Jain, wrote:

नमि प्रवज्जया यह भगवान महावीर की अन्तिम देशना का नौवां अधयाय है। नमि जिसके आगे सब झुक जाये, दीक्षा,संन्यास और प्रवज्जया का अर्थ एक ही है परन्तु कुछ अन्तर है दीक्षा- शिक्षा से ग्रहण किया उसे व्रत के रुप में धारण करना, संन्यास- काम,क्रोध विषय विकारो को त्याग कर सत्य की खोज करना, प्रवज्जया- अपना सब कुछ त्याग कर परिवार, भाई-बहन, मां-बाप धन दौलत, जमीन-जायदाद त्याग कर आत्मा में रमण करना,जैसे जैन सन्त-साध्वियां, इस अध्याय की 62 गाथाएं है, जिसका सार इस प्रकार है।
भारत में अवन्ति जनपद में सुदर्शन नाम का नगर जहां मणिरथ नाम का राजा राज्य करता था,उसका भाई था युगबाहू की पत्नि थी जो तप,संयम की अऱाधना करती थी,और अति सुन्दर थी, मणिरथ कुदृष्टि से मन विकरों में उलझकर प्रालोभन देने लगा निष्फल होने से उसने विचार किया कि बीच का रोढ़ा ही समाप्त कर दिया जाय, जब वह दोनो विश्राम कर रहे थे तो रात्री के अन्धेरे में मणिरथ ने अवाज लगायी,युगबाहू मुझे प्यास लगी है पानी दे जा,युगबाहू जाने लगा,मदनरेखा रोकना चाही परन्तु युगबाहू भाई के प्रेमवश, पानी का लोटा लेकर गया तो पानी पकड़ कर तलवार से वार कर दिया गर्दन लुड़क गयी और चिल्लाया, मणिरथ घोड़े पर सवार होकर जंगल में दूर निकल गया और चीख सुनकर मदनरेखा गयी और युगबाहू को कमरे में ले आई और कहने लगी मौत तेरे पास खड़ी है अपनी भावना न बिगड़ने दे 18 पपों का त्यागकर संयम धारण कर और इतने में मरकर पंचवे देवलोक में देव हुआ। मणिरथ के घोड़े के पांव सर्प की पूंछ पर पड़ गया जो उछल कर मणिरथ को डंक मारा जिससे वह मरकर पांचवे नरक में गया मदनरेखा गर्भवती ने विचार किया कि अब महल में नहीं रहना और जंगलों में चली गयी, वहीं के फल-फरूट खाकर निर्वाह करने लगी, समय आने पर सरोवर के किनारे लड़के को जन्म दिया, साड़ी का पल्लू फाड़ कर उसमें रख कर वृक्ष से बांध दिया और अपनी सफाई के लिये सरोवर में कूद गई, वहां एक जलहस्ती ने सूंड से उछालकर सरोवर से बाहर किया, उसी समय मणिप्रभ नामक विद्याधर आकाश मार्ग से विमान द्वारा कहीं जा रहा था, करुणावश मदनरेखा को आकाश में पकड़ कर बैठा लिया और विमान को वापिस मोड़ लिया, मदनरेखा ने युक्ति से पूछा आप वापिस क्यों जा रहे हो,मणिप्रभ कहने लगा मेरे पिता चार ग्यान के धारक साधु है उनके दर्शन करने जा रहा था, आपके रूप लावन्य को देखकर मेरा मन चाहता है कि पहले तुम्हें अपने महल ले चलूं, फिर कभी दर्शन कर लूंगा।अवसर देखकर मदनरेखा कहने लगी, मुझे भी दर्शन करवा दो,मणिप्रभ ने विचार किया नारी की बात मानने से नारी भी सहमत हो सकती है, दोनों गुरुमहाराज के दर्शन करने पहंच गये, गुरुमहाराज के प्रवचन सुनने से मणिप्रभ के विचार ही बदल गये,कि एक देव प्रकट हुआ और पहले मदनरेखा को वन्दना की बाद में गुरु महाराज को, मणिप्रभ ,यह क्या, गुरुमहाराज ने फरमाया यह युगबाहू है,मदनरेखा के सदोपदेश के कारण यह देवलोक में देव हुआ, मदनरेखा ने गुरुदेव से कहा, मेरा बच्चा,-गुरुदेव- मिथिला नरेश वनक्रीड़ा करने आया था, निसन्तान था, उसने बच्चे को महारानी की गौद में रखदिया, वह राजसी सुख भोग रहा है, बालक के महल मे आने से सभी दुशमन राजा की शरण में आ गये, इसलिए नाम रखा नमि, देव बोला- मेरे लायक कोई सेेवा- मदनरेखा ने कहा- मैं दीक्षा लेना चाहती हूं, देव ने साध्वी के पास पहुंचा दिया मदनरेख को, वहां वह दीक्षा लेकर साधना में लीन हो गई।
नमि युवा हो गया,108 राजकुमारियों कै साथ विवाह हुआ और राज्य का प्रबन्ध बड़ी कुशलता से करने लगा कि नरेश ने नमि को राज्य का उत्तराधिकार सौंपकर परव्रज्या ग्रहण कर तप संयम की साधना कर मोक्ष प्राप्त किया।
एकबार नमि की हस्तिबल से सफेद हाथी मस्त होकर किसी दूसरे राज्य में चला गया, वहां का राजा था चन्द्रयश। नमि ने वहां दूत भेजा, मेरा हाथी लौटा दो, चन्द्रयश ने कहा, क्या तुम्हारे राजा को राजनीति नहीं आती, हाथी स्वयं चलकर आया है, जिससे वह हमारा हो गया है ।
नमि की बात न मानने पर विरोध बड़ गया युद्ध की नौबत आ गई, युद्धक्षैत्र मैं सेनांये आमने- सामने थी कि मदनरेखा ने अवधिग्यन मे देखा रक्तपात हो जायेगा,गुरुणी से परामर्श कर युद्ध मैदान दोनों सैनाओं के बीच खड़ी हो गयी, नमि और चन्द्रयश ने प्रणाम किया और कहा,माँ तुम कैसे,
मदनरेखा ने चम्द्रयश से कहा- नमि तुम्हारा छोटा भाई है,युद्ध करना शोभा नहीं देता, नमि से कहा-बड़े भाई से युद्ध, सुनते ही दोनों गले मिले, चन्द्रयश ने कहा-हाथी क्या मैं सारा राज्य नमि को सौंप कर दीक्षा,ग्रहण करता हूं।

नमि अब दो देशों का राज्य प्रबन्ध बड़ी कुशलता से करने लगा कि नमि को रोग हो गया,वैद्यों ने कहा इसका ईलाज गौशीर्षचन्दन का लेप है, जिससे 108 रानियां चन्दन रगड़ने लगी और हाथों में पहनी हुई चूड़िया खड़कने की आवाज से जो शोर उत्पन्न हुआ ,महाराज को आशान्त करने लगा, महाराज नमि ने कहा- मन्त्री जी शोर कैसा, मन्त्री- महाराज रानियां चन्दन रगड़ रहीं है,उनके हाथों में पहनी हुई चूड़ियों की आवाज है, मन्त्री रानियों के पास जाकर महराज की आशान्ती की बात कही, रनियों ने चूड़िया उतार दी केवल एक-एक चूड़ी रखी जिससे आवाज खड़कने की बन्द हो गई।

महाराज-मन्त्री जी क्या चन्दन रगड़ना बन्द हो गया, मेरै ईलाज की कोई प्रवाह नहीं, नहीं महाराज चन्दन रगड़ा जा रहा है, शोर कम करने के लिये रानियों ने केवल एक चूड़ी पहन कर रगड़ रही है ।

महाराज अच्छा एक-दो का चक्र है आत्मा और शरीर विचार करते नींद आ गई, स्वप्न देखते है सातवें देवलोक का दृश्य, नींद खुली, यह दृश्य कहीं देखा है कि रोग गायब हो गया और जतिस्मरण ग्यान से वैराग्य हो गया, बड़े पुत्र को राज्य सौंप कर दीक्षित हो गये, कि ईन्द्र का सिंहासन डोल गया, ब्राह्मण का रुप धारण कर नमि से दस प्रश्न किये कि नमि संन्यास से अस्थिर हो जाय, परन्तु नमि ने दृड़ता से उत्तर दिये, जिससे ईन्द्र अपने रुप में आकर अणगार नमि को वन्दन कर लौट गया।

द्रुम पत्रकम्

यह उत्तराध्ययन सूत्र का दसवां अध्याय है, श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने जीव की वृक्ष के पत्ते से तुलना की है कि पत्ता भिन्न प्रस्तथ्तियों से होता हुआ पीला पड़ जाने से कैसे हवा के झोके से टूट जाता है,
कुछ ऐसे मनुष्य होते हैं जिनकी आयु तो लम्बी होती है किन्तु उनके जीवन में सुख और शान्ति के स्थान पर हजारों विघ्न बाधाएं भरे रहते हैं ।रोग, शोक ,भय, हानि, विषाद, चिन्ताएं, अनिष्ट- संयोग, इष्ट-वियोग, ईर्ष्या इत्यादि के चक्रव्यूह में जीवन फंसा रहता है । धर्म भावना का अभाव रहता है, धर्म का मिलना भी हो जाय तो समझना आसान नहीं होता, वह भी जिण-वणी पर जो अहिंसा पर आधारित है, मनुष्य जन्म अति दुर्लभ है, जीव चौरासी में भ्रमण करता है, नारकी में और देव योनी में एक बार से अधिक भ्रमण नहीं करता,फिर योनी बदलता है। इस अध्याय की 37 गाथाएँ है, 36 गाथाओ में भगवान ने गौतम स्वामी को कहा है क्षण भर का भी प्रमाद मत कर, समय को बर्बाद करोगे तो समय तुम को बर्बाद कर देगा।
बहूश्रुत-पूजक
बहूश्रुत एवं अल्पश्रुत, बहूश्रुत साधक परिगृह,विलासिता,एकान्तवाद(कट्टरता) से दूर रहे
मूंड मूंडाए तीन गुण,सिर की मिट गई खाज,,
खाने को लड्डू मिले, लोग कहें महाराज ।।
एवं
साधु जीवन कठिन है, जैसे पेड़ खजूर,
चड़े तो चाखे प्रेम रस, गिरे तो चकना चूर ।।

बहूश्रुत-पूजक

हरिकेश्यी बल

श्रमण भगवान महावीर का दर्शन कर्मवाद पर अधारित है, हृरिकेशीय बल की कथा का सार है कि चाण्डाल जन्म से और व्यवहार से प्राणी कर्मानुसार फल भोगता है। मिथिला नरेश को वैराग्य हुआ और राज्य-पाट ठुकरा कर भगवती दीक्षा ग्रहण कर तप-संयम की आराधना से शांत स्वभाव विचरण करते हस्तिनापुर नगरी पधारे और भिक्षा हेतु जा रहे हैं कि दो रास्ते है एक गर्म रास्ता और एक ठंडा रास्ता, वहां का नरेश अपराधियों को दंड के रुप में गर्म रास्ते पर चलने को कहता, जिससे पैर जल जाते और शरीर त्याग देते, मुनि महाराज को एक ब्राह्मण नवयुवक ने तमाशा देखने के भाव से शांत मुनि को गर्म रास्ते का आह्वान किया, मुनि महाराज चलने लगे बड़े आराम से, जातिवाद के मद् से ब्राह्मण युवक देख रहा है कि साधु निशचिन्त हो कर चल रहा है, वह भी चलने लगा और विचार किया कि शांत साधु से रास्ता भी शांत हो गया, वह साधु महाराज के आगे आकर प्रायश्चित करने लगा और कहने लगा, मैं तुम्हारा तमाशा देखना चाहता था कि तुम कैसे गर्म रास्ते पर तड़पते और मुनि महाराज ने धर्मोपदेश दिया कि वह ब्राह्मण मुनि जी के आगे दीक्षित हो गया और नाम दिया सोमदेव, वह तप-संयम में लीन तपस्या करने लगा, शरीर भी कृशकाय हो गया परन्तु जाति-मद् नहीं गया कि मैं उच्च कुल का हूं और रुप में भी सुन्दर हूं, अतःप्राण त्याग कर साधारण जाति का देव हुआ, वहां से आयु पूर्ण कर जातिमद् के प्रभाव से गंगा नदी के तट पर हरिकेश जाति के अधिपति बलकोष्ठ नामक चाण्डाल की पत्नी गौरी की कुक्षि से पुत्र रुप में उत्पन्न हुया, उसका नाम रखा गया बल, वही हृरिकेशीबल के नाम से विख्यात हुआ।
जातिमद् के कारण बडौल शरीर,चपटा नाक और चमड़ी अत्यन्त काली, स्वभाव झगड़ालू से साथियों के साथ खेलते झगड़ना। लोगों ने उसे क्रोधी सर्वजन अप्रिय होने से उसे पकड़ कर बाहर कर देना और शेष बालकों ने खेल जारी रखने से वह चिड़चड़ा भी हो गया । आचानक वहां एक सर्प निकल आया, वह देखता है कि लोगों ने पत्थर मार-मार कर सर्प को मार दिया,कुछ ही क्षण के बाद एक निर्विष दोमूहीं (अलसिया) निकला, जिसे छोड़ दिया।
वह सोचने लगा कि प्राणी अपने ही पापों से दुःख भोगता है, विषैले सर्प की तरह मेरा स्वभाव क्रोधी रहा तो लोग मुझे भी मार देगें, विवेक की ज्योति जाग उठी, सोया मन जागृत हुआ, मोहकर्म शान्त हुआ, जाति स्मरण होते ही जाति-मद् के दुष्परिणाम आँखों के सामने चलचित्र की तरह आने से विरक्ति की भावना उमड़ पड़ी और दीक्षा ग्रहण कर विषय-कषाय, राग-द्वेष से मुक्त होकर साधुता का पालन करने लगे । तपस्या मास-खमण करते शरीर कृश-काय से, उच्च-साधना से देव-यक्ष उनकी सेवा में रहने लगा।
एक बार विहार करते हुए वाराणासी पहुँच गये, वहां एक उद्यान के पास ध्यानस्थ थे कि उस उद्यान में नरेश के कुलदेव का मन्दिर था, वहां के नरेश कौशालिक की बेटी भद्रा पूजा करने आई, जब वह प्रदक्षिणा कर रही थी कि नजर तापस्वी साधु पर पड़ी बडौल शरीर और काला चेहरा पहली बार देखा,घृणा हुई नफरत से उस पर थूक दिया कि यक्ष को पीड़ा हुई और वह भद्रा में प्रवेश कर गया, वह तड़पने लगी, दास-दासियां लेकर महल पहुंचे, हाहाकार मच गया, नरेश परेशान की यक्ष ने कहा- इसने तपस्वी साधु का अपमान किया है, राज-परोहित को बुलाया गया,उसने कहा- भद्रा का विवाह उसी से कर दो, नरेश भद्रा को लेकर साधु के पास पहुंचा और साधु से कहा इसका विवाह तुम्हारे साथ करते है, मुनि महाराज ने कहा हम यति विवाह नहीं करते, राजा भद्रा को वहां छोड़ कर महल में आ गया। यक्ष ने भद्रा को परेशान किया कि सुबह होते ही भद्रा महल में पहुँच गयी और सारी घटना नरेश को बतलाई, नरेश कुल परोहित को बुलाया और पूछा अब क्या किया जाय, पुरोहित ने कहा कि इसको ऋषि को सौ्पा जा चुका है अब किसी ब्राह्मण को सौंप दी जाय कि राज पुरोहित को ही सौंप दी गई।
राज पुरोहित नै एक बड़े यग्य का अव्हाण किया, बहुत ब्राह्मण और जनता बुलाई गई खाने आदि का विशेष प्रबन्ध किया गया कि हृरिकेशेयी मुनि वहां भिक्षा के लिये पहुँच गया,बदसूरत देखकर उसकी पिटाई कर दी गई कि यक्ष अपने स्वामी कि रक्षा हेतु सब ब्राह्मणों को उलटा लटका दिया, कुछ वमन करने लगे, हाहाकार मच गया, कि भद्रा ने कहा यह महा तपस्वी साधु है, ब्रह्मचारी है, इसी के कारण मैं तुम्हारे पास आई हूं, क्षमायाचना करो, सब कहने लगे बाबा जी माफी दो, भद्रा ने स्वयं सब के लिये प्रार्थना की और आहार के लिये विनती की जिस से यक्ष शांत हो गया और सब हृरिकेशीय की साधना को ही यग्य मानने लगे ।
किसी की भी असातना नहीं करनी चाहिये । सन्तो के प्रवचनों से जो कुछ समझ पाया हूँ यदि कुछ लिखने में गलत हो गया हो तो क्षमाप्रार्थी हूं ।
Error Icon

Address not found

Your message wasn’t delivered to inushradha@gmail.com because the address couldn’t be found, or is unable to receive mail.
LEARN MORE
The response was:

550 5.1.1 The email account that you tried to reach does not exist. Please try double-checking the recipient’s email address for typos or unnecessary spaces. Learn more at https://support.google.com/mail/?p=NoSuchUser o15-20020a056e02102f00b00357a04e173esor3935669ilj.10 – gsmtp

भारत और इस्लाम धर्म

भारतीय संस्कृति और सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन (सनातन) और आर्य (श्रेष्ठ) है जिसको हम करोड़ों वर्ष पुरानी कह सकते है। भारतीय धर्म से ही विश्व के समस्त धर्मों का निर्माण हुआ।उस समय श्रवण शक्ति अधिक होने से सबकुछ मौखिक ही रहता था और गुरु शिष्य परम्परा से ही ज्ञान मिलता रहा है। लम्बे समय के बाद लगभग आज से ग्यारह लाख वर्ष पुराने समय श्री राम जी के समय से लिखित परंपरा आरम्भ हुई जो वाल्मीकि रामायण से प्रसिद्ध है और वेद ऋषि ब्यास द्वारा महाभारत काल में लिखे गए,जिसे पांच हजार वर्ष पुराना माना जाता है। भारत के राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन जी मानते हैं कि वेद लिखे जाने से बहुत पहले जैन दर्शन साहित्य उपलब्ध था। जो समस्त विश्व में फल-फूल रहा था। समयानुसार विकृतियों से परिवर्तन होने स्वाभाविक है और बलशाली अपने ढंग से प्रचारित कर स्वयं की मान्यता करवाने लगजाता है जिससे अन्य देशों में कबीलों में फल-फूलने लगा। फिर आज से 4000 वर्ष पूर्व यूनान में महान विचारधारा से प्रभावित होकर यूनानी धर्म की शुरुआत हुई और भाषा एवं चिकित्सा में विशेष महत्व दिया। आदिनाथ को ही आदिमबाबा Adam माना है।याहूदी धर्म एक मात्र ऐसा धर्म है जिसने धर्म को एक नई व्यवस्था में सुधार किया। याहूदी धर्म के पश्चात पारसी धर्म जो भारतीय ऋषि अत्रि के कुल से ही संस्थापक जरथुस्त्र थे उन्होंने पारस जो आज कल ईरान कहलाता है में ही फैला।
उस समय भारत में वैष्णव और जैन धर्म के साथ भगवान बुद्ध भी राजघरानों का धर्म बना। भारत में किसी भी राजा-महाराजाओं ने किसी धर्म विशेष को नहीं फैलाया केवल महाराज अशोक ने बौद्ध धर्म को अन्य देशों तक अफगानिस्तान,फारसी, तिब्बत, चीन,जापान, ब्रह्मा एवं अन्य देशों में अपने प्रतिनिधि एवं धर्म प्रचारक भेजकर बोद्ध धर्म के अनुयाई बनाते।बोद्ध धर्म में आदिनाथ को ही आदि बुद्ध को ही धर्म प्रवर्तक माना है। समकालीन जैन धर्म में भगवान महावीर हुए हैं। इसी काल में समस्त विश्व में अनेक प्रबुद्ध विचार धारा वाले महानुभाव जैसे ग्रीस में पैथेगोरस,नस्त्रादम,यैरोसलम में जीसस क्राइस्ट का जन्म 400bc यूनानी इब्राहीम कबीले में हुआ था। कुछ अलग विचार धारा यूनान धर्म में परिवर्तित कर ईसाई धर्म की नींव रखी और योरूप में प्रचार किया। युनानी धर्म प्रचारकों ने धोखे से 36 वर्ष की आयु में फांसी पर लटका दिया गया था।युनानीयों और ईसाई धर्म में तकरार चलता रहा।अरब देशों में धर्म कबीलों में फल-फूलने लगा और वह कबीले तीन देवियां की मूर्ति पूजा करने लगे, वर्ष में एक बार इकट्ठा होते थे। वहां के अवशेषों में भारतीय देवी देवताओं के चिन्ह मिलते-जुलते पाए गए हैं।
मुहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में “मक्का”(सऊदी अरब) में हुआ। उनके परिवार का मक्का के एक बड़े धार्मिक स्थल पर प्रभुत्व था। उस समय अरब में यहूदी, ईसाई धर्म और बहुत सारे समूह जो मूर्तिपूजक थे क़बीलों के रूप में थे। मक्का में काबे में इस समय लोग साल के एक दिन जमा होते थे और सामूहिक पूजन होता था। आपने ख़ादीजा नाम की एक विधवा व्यापारी के लिए काम करना आरंभ किया। बाद (५९५ ई.) में २५ वर्ष की उम्र में उन्हीं(४० वर्ष की पड़ाव) से शादी भी कर ली। सन् ६१३ में आपने लोगों को ये बताना आरंभ किया कि उन्हें अल्लाह से यह संदेश आया है कि अल्लाह एक है और वो इन्सानों को सच्चाई तथा ईमानदारी की राह पर चलने को कहता है। उन्होंने मूर्तिपूजा का भी विरोध किया। पर मक्का के लोगों को ये बात पसन्द नहीं आई। हज़रत मुहम्मद साहब ने वहां के कबीलों को इकट्ठा कर कहा कि अल्लाह का फरमान सुनाया गया है कि मूर्ति पूजा नहीं करनी चाहिए। मूहम्मद स्० के अनुयायियों को मक्का के लोगों द्वारा विरोध तथा मुहम्म्द साहब के मदीना प्रस्थान जिसे हिजरत नाम से जाना जाता है मदीना से ही इस्लाम को एक धार्मिक सम्प्रदाय माना गया। मुहम्मद के जीवन काल में और उसके बाद जिन-जिन प्रमुख लोगों ने अपने आपको पैगंबर घोषित कर रखा था वो थे, मुसलमा, तुलैहा, अल-अस्वद, साफ़ इब्न सैय्यद,और सज़ाह।

अगले कुछ वर्षों में कई प्रबुद्ध लोग मुहम्मद स्० (पैगम्बर नाम से भी ज्ञात) के अनुयायी बने। उनके अनुयायियों के प्रभाव में आकर भी कई लोग मुसलमान बने। इसके बाद मुहम्मद साहब ने मक्का वापसी की और बिना युद्ध किए मक्काह फ़तह किया और मक्का के सारे विरोधियों को माफ़ कर दिया गया। इस माफ़ी की घटना के बाद मक्का के सभी लोग इस्लाम में परिवर्तित हुए। पर पैगम्बर मुहम्मद को कई विरोधों और नकारात्मक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने हर नकारात्मकता से सकारात्मकता को निचोड़ लिया जिसके कारण उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में जीत हासिल की। उनकी वफात के बाद अरबों का साम्राज्य और जज़्बा बढ़ता ही गया। अरबों ने पहले मिस्र और उत्तरी अफ्रीका में अपनी पकड़ मजबूत कर ली। पश्चिम दिशा में सफलता नहीं मिली और पूर्व में पारसियों को परास्त कर जो अब ईरान है सब को इस्लाम काबूल करवाया। पारसी समुदाय भारत में आगया।
शिया कौन थे?
बगदाद में अब्बासियों की सत्ता तेरहवीं सदी तक रही। पर ईरान और उसके आसपास के क्षेत्रों में अबु इस्लाम के प्रति बहुत श्रद्धा भाव था और अब्बासियों के खिलाफ रोष। उनकी नजर में अबू इस्लाम का सच्चा पुजारी था और अली तथा हुसैन इस्लाम के सच्चे उत्ताधिकारी। इस विश्वास को मानने वालों को शिया कहा गया। अली शिया का अर्थ होता है अली की टोली वाले। इन लोगों की नज़र में इन लोगों (अली, हुसैन या अबू) ने सच का रास्ता अपनाया और इनको शासकों ने बहुत सताया। अबू इस्लाम को इस्लाम के लिए सही खलीफा को खोजकर भी फाँसी की तख़्ती को गले लगाना पड़ा। उसके साथ भी वही हुआ जो अली या इमाम हुसैन के साथ हुआ। अतः इस विचार वाले शिया कई सालों तक अब्बासिद शासन में रहे जो सुन्नी थे। इनको समय समय पर प्रताड़ित भी किया गया। बाद में पंद्रहवीं सदी में साफावी शासन आने के बाद शिया लोगों को इस प्रताड़ना से मुक्ति मिली।
खिलाफत
सन् 632 में जब पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु हुई मुस्लिमों के खंडित होने का भय उत्पन्न हो गया। कोई भी व्यक्ति इस्लाम का वैध उत्तराधिकारी नहीं था। यही उत्तराधिकारी इतने बड़े साम्राज्य का भी स्वामी होता। इससे पहले अरब लोग बैजेंटाइन या फारसी सेनाओं में लड़ाको के रूप में लड़ते रहे थे पर खुदकभी इतने बड़े साम्राज्य के मालिक नहीं बने थे। इसी समय ख़िलाफ़त की संस्था का गठन हुआ जो इस बात का निर्णय करता कि इस्लाम का उत्तराधिकारी कौन है। मुहम्म्द साहब के दोस्त अबू बकर को मुहम्मद का उत्तराधिकारी घोषित किया गया।
भारत में इस्लाम धर्म का प्रवेश
हर्ष के पश्चात भारतीय इतिहास में कई छोटे छोटे राज्यों का उदय दिखाई पड़ता है। राजपूताना में गुर्जर, बुन्देलखण्ड में चन्देलो, बंगाल में पालों ने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। तत्कालीन राजनीतिक एकता के अभाव से देश छोटे छोटे राज्यों में विभक्त हो गया। जिसका दुष्परिणाम से तुर्को का देश पर आक्रमण हुआ। बाहरवीं शताब्दी में भारत रियासतों में बंटा हुआ था, यहां के राजा महाराजा शक्तिशाली होने के बावजूद निर्णय लेने में सक्षम नहीं स्वतंत्र थे, मन्त्रियों पर नितिगत अधिकार दे रखा था। सर्व प्रथम तुलका ने 60000सैनिको के साथ कश्मीर में आक्रमण किया। कश्मीर और अन्य महाराजाओं में बातचीत चल रही थी कि सब मिलकर विरोध करें परन्तु कुछ मन्त्रियों के स्वाभिमान से समझौता नहीं हो सका। इससे पहले भारत में हिन्दू शब्द नहीं था,न ही यह कोई धर्म सम्प्रदाय, समुदाय और परम्परा थी। सिन्धु सभ्यता के कारण भारत में निवास करने वाले हिन्दू कहलाने लगे। कश्मीर में जाति परिवर्तन हुआ, कत्लेआम भी हुआ, जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया फिर भी वह हिन्दू मान्यताओं को मानते रहे। भारत एक सोने की चिड़िया थी इसलिए लूटपाट की दृष्टि से आक्रमण होते रहे। भारतीय राजाओं ने प्रयास नहीं किया कि आगे बढ़कर उनको विफल किया जाए। जिससे इस्लाम धर्म को भारत में पैर पसारने शुरू हो गया। उस समय भारत में जाति वाद का भी बोलबाला था, गरीब और शुद्रों पर क्षत्रिय और ब्राह्मणों का अत्याचार, मंदिरों में पूजा-अर्चना का अधिकार नहीं,वेद पुराण पढ़ने की आज्ञा नहीं थी।जो आक्रमण कारी विजयी हुए उन्होंने निम्न वर्ग को इस्लाम धर्म कबूल करवाकर अपने राज्य में पदोन्नतियों देकर सम्मानित किया। जिससे इस्लाम धर्म भारत में वैष्णव धर्म को पछाड़ने लगा और भारत में राज्य करने वाले बनागये। हिन्दू मन्दिरों को मस्जिदों में बदल दिया गया। भारतीय सम्पत्ति को लूटकर अरब देशों में लेगये और इस्लाम धर्म भारत का एक अंग बन गया।
फिर सूफीवाद और सिक्ख धर्म ने इस्लाम धर्म पर रोक लगाई। श्री गुरु नानक देव जी का मुख्य शिष्य मरदाना मुस्लिम समुदाय का था और श्री गुरु नानक देव जी महाराज के सानिध्य में मक्का मदीना तक भ्रमण किया। यदि सिक्ख समुदाय और पंजाब के योद्धा इन पर अंकुश न लगाते तो हिन्दू संस्कृति नष्ट हो जाती। फिर ईसाई धर्म और अंग्रेजों ने भारत में प्रवेश किया और राज्य करने लगे, हिन्दू मुस्लिम कानून बना दिया और समस्त भारत को गुलाम बनाकर अत्याचार करने लगे। कुछ ऐसे कानून बनाए,जिस किसी राज्य का उत्तराधिकारी नहीं,वह राज्य अंग्रेजों के अधीन हो गया। हिन्दू मुस्लिम ने मिलकर विरोध किया और आजादी के लिए संघर्ष किया परन्तु कट्टरपंथियों ने टूनेशन थ्योरी और हिन्दू राष्ट्र ने नफ़रत के बीज डालकर भारत विभाजन विभीषिका से पाकिस्तान का जन्म हुआ। आज भी भारत दुनिया में दूसरा सबसे अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाला देश है, जिसमें सब को सामान्य अधिकार है और राष्ट्रपति पद को सुशोभित कर चुके हैं। मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार है, सहशिक्षा में पढ़ने पढ़ाने का अधिकार है चुनाव में विजई होकर सरकार में शामिल हो सकती हैं।
शरीयत
किसी भी धर्म गुरुओं ने कोई कानून नहीं बनाए। उन्होंने तो आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने पांच संदेश दिया, जिससे इस्लाम खुदा को समर्पित है और खुदा एक ही है। दूसरी पांच बार नमाज, तीसरी दान,चौथा रोजा, पांचवां हज यात्रा।
तालिबान का पवित्र क़ुरआन में अल्लाह और रसूल ने कोई वर्णन नहीं किया। कहीं भी बल-प्रयोग की इजाजत नहीं। कुछ कट्टर विचारधारा के व्यक्ति हर धर्म में अपने को धर्मात्मा और खुदा और परमात्मा का उत्तराधिकारी बताकर लोगों को मूर्ख बनाया जाता है और हिंसा का तांडव करते हैं।
धर्म के ठेकेदारों से बचना ही धर्म है। भारत शांति के लिए सदैव तत्पर रहता है। समस्त धर्म पूजनीय है।  विश्व के समस्त इस्लामिक देशों को हज़रत मोहम्मद साहब के पांच स्वदेश पर विचार कर अफगानिस्तान में हो रहे नरसंहार से बचाना चाहिए।और विश्व में शांति ही परम धर्म है।
न हिन्दू बुरा,न मुस्लमान बुरा।
बुरा तो वह हैं जिसका ईमान बुरा।।
स्वतन्त्र जैन जालन्धर
9855285970
14/9/2021

आज की रात।

बहारों फूल बरसाओ, महावीर की दो धाराओं का मिलन हो रहा है
आज की रात। आज की रात
बहारों गुणगुनाओ, आचार्य विद्यासागर और आचार्य शिवमुनि के शासन की शोभा बढ़ रही है आज की रात।आज की रात।
बहारों मुस्कराओ , माला देवी, रेशमा जैन वेलवेट में अतिथियों का स्वागत कर रही है आज की रात।आज की रात।
बहारों खिलखिलाओ चमून्डादास शैलजा -प्रदीप श्रद्धा परिवारों का सम्बन्ध हो रहा है । शगन मनाए जा रहें हैं आज की रात।आज की रात।
बहारों रंग दिखलाना पलक और मैत्री सुधा के महन्दी सज़ा रहीं हैं आज की रात।आज की रात।
बहारों शहनाई गूंजाओ दादा-दादी, नाना-नानी गौरांग के मणिमुकट सजा रहे हैं, आज की रात।आज की रात।
बहारों सब को सुनाओ बधाई के गीत गा रही है, मामा-मामी,तायाताई, चाचा-चाची,भूआ,-फूफढ,मासढ-मासियां, भाई-भाभीयां, बहन-बहनोई आज की रात।आज की रात।
बहारों धमक दिखलाना, नमन, नचिकेत,कशिश, रक्षित, सम्यक सक्षम लुढिया पा रहे हैं, आज की रात।आज की रात। लुढियां पंजाबी शब्द है, मस्ती में झूमना )
सितारों चमचमाओ सुधा पीहर का घर छोड़ दुल्हन बन गौरांग के साथ ससुराल जा रही है, आज की रात।आज की रात।
ऋद्धि-सिद्धि के गणपति श्री गौतम स्वामी आशीर्वाद बरसा रहे हैं, आज की रात।आज की रात।
सिद्धलय से आई आवाज सब मिलकर जयकारा लगाओ श्रमण भगवान महावीर स्वामी की जय।आज की रात।
बहारों ने फूलों का अमृत जाम भेजा है।आज की रात।
सूरज चांद सितारों ने गगन से पैगाम भेजा है।आज की रात।
मुबारक हो सुधा-गोरांगं की शादी,आज की रात।
स्वर्गों से सन्तोष ने स्वतंत्र के माध्यम से सब को बधाई और सुधा-गोरांग को आशीर्वाद भेजा है।आज की रात।

भारत और इस्लाम धर्म

भारतीय संस्कृति और सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन (सनातन) और आर्य (श्रेष्ठ) है जिसको हम करोड़ों वर्ष पुरानी कह सकते है। भारतीय धर्म से ही विश्व के समस्त धर्मों का निर्माण हुआ।उस समय श्रवण शक्ति अधिक होने से सबकुछ मौखिक ही रहता था और गुरु शिष्य परम्परा से ही ज्ञान मिलता रहा है। लम्बे समय के बाद लगभग आज से ग्यारह लाख वर्ष पुराने समय श्री राम जी के समय से लिखित परंपरा आरम्भ हुई जो वाल्मीकि रामायण से प्रसिद्ध है और वेद ऋषि ब्यास द्वारा महाभारत काल में लिखे गए,जिसे पांच हजार वर्ष पुराना माना जाता है। भारत के राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन जी मानते हैं कि वेद लिखे जाने से बहुत पहले जैन दर्शन साहित्य उपलब्ध था। जो समस्त विश्व में फल-फूल रहा था। समयानुसार विकृतियों से परिवर्तन होने स्वाभाविक है और बलशाली अपने ढंग से प्रचारित कर स्वयं की मान्यता करवाने लगजाता है जिससे अन्य देशों में कबीलों में फल-फूलने लगा। फिर आज से 4000 वर्ष पूर्व यूनान में महान विचारधारा से प्रभावित होकर यूनानी धर्म की शुरुआत हुई और भाषा एवं चिकित्सा में विशेष महत्व दिया। आदिनाथ को ही आदिमबाबा Adam माना है।याहूदी धर्म एक मात्र ऐसा धर्म है जिसने धर्म को एक नई व्यवस्था में सुधार किया। याहूदी धर्म के पश्चात पारसी धर्म जो भारतीय ऋषि अत्रि के कुल से ही संस्थापक जरथुस्त्र थे उन्होंने पारस जो आज कल ईरान कहलाता है में ही फैला।
उस समय भारत में वैष्णव और जैन धर्म के साथ भगवान बुद्ध भी राजघरानों का धर्म बना। भारत में किसी भी राजा-महाराजाओं ने किसी धर्म विशेष को नहीं फैलाया केवल महाराज अशोक ने बौद्ध धर्म को अन्य देशों तक अफगानिस्तान,फारसी, तिब्बत, चीन,जापान, ब्रह्मा एवं अन्य देशों में अपने प्रतिनिधि एवं धर्म प्रचारक भेजकर बोद्ध धर्म के अनुयाई बनाते।बोद्ध धर्म में आदिनाथ को ही आदि बुद्ध को ही धर्म प्रवर्तक माना है। समकालीन जैन धर्म में भगवान महावीर हुए हैं। इसी काल में समस्त विश्व में अनेक प्रबुद्ध विचार धारा वाले महानुभाव जैसे ग्रीस में पैथेगोरस,नस्त्रादम,यैरोसलम में जीसस क्राइस्ट का जन्म 400bc यूनानी इब्राहीम कबीले में हुआ था। कुछ अलग विचार धारा यूनान धर्म में परिवर्तित कर ईसाई धर्म की नींव रखी और योरूप में प्रचार किया। युनानी धर्म प्रचारकों ने धोखे से 36 वर्ष की आयु में फांसी पर लटका दिया गया था।युनानीयों और ईसाई धर्म में तकरार चलता रहा।अरब देशों में धर्म कबीलों में फल-फूलने लगा और वह कबीले तीन देवियां की मूर्ति पूजा करने लगे, वर्ष में एक बार इकट्ठा होते थे। वहां के अवशेषों में भारतीय देवी देवताओं के चिन्ह मिलते-जुलते पाए गए हैं।
मुहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में “मक्का”(सऊदी अरब) में हुआ। उनके परिवार का मक्का के एक बड़े धार्मिक स्थल पर प्रभुत्व था। उस समय अरब में यहूदी, ईसाई धर्म और बहुत सारे समूह जो मूर्तिपूजक थे क़बीलों के रूप में थे। मक्का में काबे में इस समय लोग साल के एक दिन जमा होते थे और सामूहिक पूजन होता था। आपने ख़ादीजा नाम की एक विधवा व्यापारी के लिए काम करना आरंभ किया। बाद (५९५ ई.) में २५ वर्ष की उम्र में उन्हीं(४० वर्ष की पड़ाव) से शादी भी कर ली। सन् ६१३ में आपने लोगों को ये बताना आरंभ किया कि उन्हें अल्लाह से यह संदेश आया है कि अल्लाह एक है और वो इन्सानों को सच्चाई तथा ईमानदारी की राह पर चलने को कहता है। उन्होंने मूर्तिपूजा का भी विरोध किया। पर मक्का के लोगों को ये बात पसन्द नहीं आई। हज़रत मुहम्मद साहब ने वहां के कबीलों को इकट्ठा कर कहा कि अल्लाह का फरमान सुनाया गया है कि मूर्ति पूजा नहीं करनी चाहिए। मूहम्मद स्० के अनुयायियों को मक्का के लोगों द्वारा विरोध तथा मुहम्म्द साहब के मदीना प्रस्थान जिसे हिजरत नाम से जाना जाता है मदीना से ही इस्लाम को एक धार्मिक सम्प्रदाय माना गया। मुहम्मद के जीवन काल में और उसके बाद जिन-जिन प्रमुख लोगों ने अपने आपको पैगंबर घोषित कर रखा था वो थे, मुसलमा, तुलैहा, अल-अस्वद, साफ़ इब्न सैय्यद,और सज़ाह।

अगले कुछ वर्षों में कई प्रबुद्ध लोग मुहम्मद स्० (पैगम्बर नाम से भी ज्ञात) के अनुयायी बने। उनके अनुयायियों के प्रभाव में आकर भी कई लोग मुसलमान बने। इसके बाद मुहम्मद साहब ने मक्का वापसी की और बिना युद्ध किए मक्काह फ़तह किया और मक्का के सारे विरोधियों को माफ़ कर दिया गया। इस माफ़ी की घटना के बाद मक्का के सभी लोग इस्लाम में परिवर्तित हुए। पर पैगम्बर मुहम्मद को कई विरोधों और नकारात्मक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने हर नकारात्मकता से सकारात्मकता को निचोड़ लिया जिसके कारण उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में जीत हासिल की। उनकी वफात के बाद अरबों का साम्राज्य और जज़्बा बढ़ता ही गया। अरबों ने पहले मिस्र और उत्तरी अफ्रीका में अपनी पकड़ मजबूत कर ली। पश्चिम दिशा में सफलता नहीं मिली और पूर्व में पारसियों को परास्त कर जो अब ईरान है सब को इस्लाम काबूल करवाया। पारसी समुदाय भारत में आगया।
शिया कौन थे?
बगदाद में अब्बासियों की सत्ता तेरहवीं सदी तक रही। पर ईरान और उसके आसपास के क्षेत्रों में अबु इस्लाम के प्रति बहुत श्रद्धा भाव था और अब्बासियों के खिलाफ रोष। उनकी नजर में अबू इस्लाम का सच्चा पुजारी था और अली तथा हुसैन इस्लाम के सच्चे उत्ताधिकारी। इस विश्वास को मानने वालों को शिया कहा गया। अली शिया का अर्थ होता है अली की टोली वाले। इन लोगों की नज़र में इन लोगों (अली, हुसैन या अबू) ने सच का रास्ता अपनाया और इनको शासकों ने बहुत सताया। अबू इस्लाम को इस्लाम के लिए सही खलीफा को खोजकर भी फाँसी की तख़्ती को गले लगाना पड़ा। उसके साथ भी वही हुआ जो अली या इमाम हुसैन के साथ हुआ। अतः इस विचार वाले शिया कई सालों तक अब्बासिद शासन में रहे जो सुन्नी थे। इनको समय समय पर प्रताड़ित भी किया गया। बाद में पंद्रहवीं सदी में साफावी शासन आने के बाद शिया लोगों को इस प्रताड़ना से मुक्ति मिली।
खिलाफत
सन् 632 में जब पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु हुई मुस्लिमों के खंडित होने का भय उत्पन्न हो गया। कोई भी व्यक्ति इस्लाम का वैध उत्तराधिकारी नहीं था। यही उत्तराधिकारी इतने बड़े साम्राज्य का भी स्वामी होता। इससे पहले अरब लोग बैजेंटाइन या फारसी सेनाओं में लड़ाको के रूप में लड़ते रहे थे पर खुदकभी इतने बड़े साम्राज्य के मालिक नहीं बने थे। इसी समय ख़िलाफ़त की संस्था का गठन हुआ जो इस बात का निर्णय करता कि इस्लाम का उत्तराधिकारी कौन है। मुहम्म्द साहब के दोस्त अबू बकर को मुहम्मद का उत्तराधिकारी घोषित किया गया।
भारत में इस्लाम धर्म का प्रवेश
बाहरवीं शताब्दी में भारत रियासतों में बंटा हुआ था, यहां के राजा महाराजा शक्तिशाली होने के बावजूद निर्णय लेने में सक्षम नहीं थे, मन्त्रियों पर नितिगत अधिकार दे रखा था। सर्व प्रथम तुलका ने 60000सैनिको के साथ कश्मीर में आक्रमण किया। कश्मीर और अन्य महाराजाओं में बातचीत चल रही थी कि सब मिलकर विरोध करें परन्तु कुछ मन्त्रियों के स्वाभिमान से समझौता नहीं हो सका। इससे पहले भारत में हिन्दू शब्द नहीं था,न ही यह कोई धर्म सम्प्रदाय, समुदाय और परम्परा थी। सिन्धु सभ्यता के कारण भारत में निवास करने वाले हिन्दू कहलाने लगे। कश्मीर में जाति परिवर्तन हुआ, कत्लेआम भी हुआ, जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया फिर भी वह हिन्दू मान्यताओं को मानते रहे। भारत एक सोने की चिड़िया थी इसलिए लूटपाट की दृष्टि से आक्रमण होते रहे। भारतीय राजाओं ने प्रयास नहीं किया कि आगे बढ़कर उनको विफल किया जाए। जिससे इस्लाम धर्म को भारत में पैर पसारने शुरू हो गया। उस समय भारत में जाति वाद का भी बोलबाला था, गरीब और शुद्रों पर क्षत्रिय और ब्राह्मणों का अत्याचार, मंदिरों में पूजा-अर्चना का अधिकार नहीं,वेद पुराण पढ़ने की आज्ञा नहीं थी।जो आक्रमण कारी विजयी हुए उन्होंने निम्न वर्ग को इस्लाम धर्म कबूल करवाकर अपने राज्य में पदोन्नतियों देकर सम्मानित किया। जिससे इस्लाम धर्म भारत में वैष्णव धर्म को पछाड़ने लगा और भारत में राज्य करने वाले बनागये। हिन्दू मन्दिरों को मस्जिदों में बदल दिया गया। भारतीय सम्पत्ति को लूटकर अरब देशों में लेगये और इस्लाम धर्म भारत का एक अंग बन गया।
फिर सूफीवाद और सिक्ख धर्म ने इस्लाम धर्म पर रोक लगाई। श्री गुरु नानक देव जी का मुख्य शिष्य मरदाना मुस्लिम समुदाय का था और श्री गुरु नानक देव जी महाराज के सानिध्य में मक्का मदीना तक भ्रमण किया। फिर ईसाई धर्म और अंग्रेजों ने भारत में प्रवेश किया और राज्य करने लगे, हिन्दू मुस्लिम कानून बना दिया और समस्त भारत को गुलाम बनाकर अत्याचार करने लगे। कुछ ऐसे कानून बना ए,जिस किसी राज्य का उत्तराधिकारी नहीं,वह राज्य अंग्रेजों के अधीन हो गया। हिन्दू मुस्लिम ने मिलकर विरोध किया और आजादी के लिए संघर्ष किया परन्तु कट्टरपंथियों ने टूनेशन थ्योरी और हिन्दू राष्ट्र ने नफ़रत के बीज डालकर भारत विभाजन विभीषिका से पाकिस्तान का जन्म हुआ। आज भी भारत दुनिया में दूसरा सबसे अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाला देश है, जिसमें सब को सामान्य अधिकार है और राष्ट्र पति पद को सुशोभित कर चुके हैं। मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार है, सहशिक्षा में पढ़ने पढ़ाने का अधिकार है चुनाव में विजई होकर सरकार में शामिल हो सकती हैं।
शरीयत
किसी भी धर्म गुरु ओं ने कोई कानून नहीं बनाए। उन्होंने तो आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने पांच संदेश दिया, जिससे इस्लाम खुदा को समर्पित है और खुदा एक ही है। दूसरी पांच बार नमाज, तीसरी दान,चौथा रोजा, पांचवां हज यात्रा।
तालिबान का पवित्र क़ुरआन में अल्लाह और रसूल ने कोई वर्णन नहीं किया। कहीं भी बल-प्रयोग की इजाजत नहीं। कुछ कट्टर विचारधारा के व्यक्ति हर धर्म में अपने को धर्मात्मा और खुदा और परमात्मा का उत्तराधिकारी बताकर लोगों को मूर्ख बनाया जाता है और हिंसा का तांडव करते हैं।
धर्म के ठेकेदारों से बचना ही धर्म है।
न हिन्दू बुरा,न मुस्लमान बुरा।
बुरा तो वह हैं जिसका ईमान बुरा।।
स्वतन्त्र जैन जालन्धर
9855285970
14/9/2021

जन जन की आस्था का केन्द्र श्री राम मंदिर

सर्व प्रथम श्रीराम को समझे की भारत की जनता श्री राम से क्यों इतना समर्पित है। आज का मानव जर जोरू और जमीन को ही अपना समझता है। उसमें उनकी प्राप्त करने की क्षमता है या नहीं। समस्त विश्व इसे प्राप्त करना ही धर्म समझ रहा है, इसलिए विश्व में अशान्ति चहूं ओर दिख रही है। श्री राम के पास यह सब कुछ था और क्षत्रिय धर्म कहता है मां-बाप सर्वोपरि है, जबकि आज का शिक्षित युवा को मां बाप से तो सब कुछ चाहिए परन्तु जब मां-बाप को आवश्यकता होतो अनेकों प्रकार की युक्तियां दिखाते हैं। श्री राम को जब महाराज दशरथ राज्य सौंपने लगे तो माता-पिता के दिए हुए वचन महाराज दशरथ के लिए तूफान आने का सूचूक श्री राम को पता चला तो श्री राम ने कहा, पिता श्री जी आप अपना क्षत्रिय धर्म निभाकर ऋणमुक्त हो जाएं,14वर्ष तो क्या मैं जीवन भर त्याग कर सकता हूं और शाही परिधान त्याग बनवास जाने लगे, तो माता-पिता के दर्शन करने पहुंचे तो सीता जी ने पतिव्रत धर्म से साथ चलने के साथ भाई लक्ष्मण भी चल पड़े।जब श्री भरत को राजगद्दी संभालने के लिए माता काकेयी ने कहा तो भारत जी ने माता काकेयी को अपशब्दों द्वारा इन्कार करने पर माता काकेयी ने कहा चलो राम को वापस लेने चलते हैं। महाराज दशरथ से आज्ञा प्राप्त कर जंगल को चल दिए।जब श्री राम ने देखा माता काकेयी और भरत आ रहें हैं, तो श्री राम आगे बढ़े, माता काकेयी रथ से उतरी, श्री राम ने चरण स्पर्श किए, भरत श्री राम के गले लग रोने लगे, भैय्या वापस अयोध्या चलो। श्री राम मैं क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए, तुम ही राज्य संभालने की आज्ञा देता हूं और वही पर भरत का राज्याभिषेक किया।उस त्याग ने राम को भगवान बनाया। भारत में जन-जन की आस्था भगवान श्री राम पर है, उन्होंने बूराईयों पर विजय पाने का संदेश दिया। समस्त भारत में भगवान श्री राम की मूर्तिया मन्दिर में मिलेगी, अब उनके जन्मस्थान अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है तो वह जन-जन की आस्था का महान् केन्द्र है।

भगवान राम को अवतारित हुए, ग्यारह लाख वर्ष बीत चुके हैं, भारत के इलावा अन्य देशों में भी भगवान श्री रामचन्द्र जी की पूजा अर्चना होती थी।इन्डोनेशिया जो विश्व में सबसे अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाला देश है, वहां अब भी रामलीला के नाटक चलते हैं। भारत में लगभग हर भाषा में रामायण लिखी गई है,सबके पात्र एक जैसे हैं परन्तु सब में भिन्नता देखी जाती है, जैसे आम में अनेक प्रजातियां दसैहरी,सफैदा, बनारसी, लंगड़ा, हाफिज सब का स्वाद अलग अलग है, वैसे ही सब रामायणों को पढ़ने पर भिन्नता मिलती है, सबसे प्राचीन वाल्मीक रामायण मानी जाती है, परन्तु मान्यता रामचरितमानस तुलसी दास जी की अधिक है, लगभग 500 भारतीय इस पर शोध कर PhD कर चुके हैं और 50 विदेशी अपनी भाषाओं में PhDकर चुके हैं ऐसा इतिहास बताता है। लम्बे अंतराल के कारण अनेकों समस्या आई होगी, जिसका इतिहास उपलब्ध नहीं होता। सैंकड़ों वर्षों की गुलामी ने वैष्णव धर्म पर अत्याचार होते रहे, जिसमें ग्यारह वीं सदी में मुगलों ने हमारे अनेकों मन्दिरों को मस्जिदों में परिवर्तन कर दिया, झगड़े भी हुए,उसी में अयोध्या का श्री राम मंदिर को मस्ज़िद बना दिया और नाम दिया बाबरी मस्ज़िद। अंग्रेजी शासन आया, विवाद कचहरियों तक पहुंच गया।1947 में भारत स्वतंत्र हुआ फिर भी मुकदमा चलता रहा। मन्दिर के कुछ भाग को ताला लगा दिया गया।1985 में जब श्री राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने ताले खुलवा दिया परन्तु मुकदमा चलता रहा। भाजपा नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी एवं कुछ अन्य नेताओं के आंदोलन ने बाबरी मस्ज़िद को ध्वस्त कर दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पर्यटन विभाग को इसकी खुदाई का काम सौंपा, जो अवशेष मिले वह तुलसी रामायण के अनुसार सिद्ध हुए। अन्ततः सुप्रीम कोर्ट में लम्बे विचार विमर्श से सिद्धांतिक रामजन्म स्थान होने के कारण फैसला राममंदिर के पक्ष में हुआ और मुस्लिम समाज को पांच एकड़ ज़मीन सरकार द्वारा दिलवाई गई और विवाद शांति पूर्वक संपन्न हुआ। भारतीय सरकार द्वारा एक कमेटी गठित की गई, जिसके अधीन मन्दिर निर्माण कार्य चल रहा है। हमारे प्रयासों ने ही जन-जन में जागरूकता पैदा की जो आस्था का कारण है। इसलिए श्री राम मंदिर जन-जन की आस्था का केन्द्र है।

जय श्रीराम।

प्रकृति, विकृति और संस्कृति

मनुष्य जन्म लेने से पूर्व हम चौरासी में भटकते आए हैं। किसी पुण्योदय से मानव जीवन मिला, जिनशासन से प्रेरित परिवार और संस्कारी माता-पिता, गुरु भगवन्तो का सानिध्य मिला समस्त परिवार और समाज से मान-सम्मान मिला परन्तु प्राकृति ही एसी मिली की अज्ञानता के कारण कुछ भूल-चूक, मनमुटाव हो ही जाता है।इसको हम विकृति न बनाएं, और अपनी अपनी संस्कृति पर विचार करते हुए अपनी विकृति को त्याग कर प्रायश्चित का मार्ग वर्ष में एक बार अपनाकर आलोचना करते हुए क्षमायाचना के भाव से (मेरा किसी से वैर भाव नहीं मेरी सबसे मैत्री है) क्षमायाचना से जन्म जन्मान्तरों के वैर विरोध से मुक्ति मिलती है। हमारी संस्कृति कितनी महान है, इसका अपनाना ही संवत्सरी है। मैं मन वचन और कर्म से क्षमायाचना करता हूं यदि किसी ने भी मुझे कुछ कहा होगा तो उसे भी क्षमा करना मेरा धर्म है।
स्वतन्त्र जैन जालन्धर।

संवत्सरी पर्व महान

धन्य धन्य है दिवस आज का,सुनो सभी इन्सान। संवत्सरी……..
राग द्वेष को त्याग के सारे,गांवों प्रभु का गान। संवत्सरी………..
गुरु चरणों में सारे आके,विनय से अपना शीश झुका के।
रगड़े झगड़े सभी मिटाके, अपने ह‌दय को पवित्र बनाके।
प्राणीमात्र से मिलकर सारे, क्षमायाचना का आवाह्न। संवत्सरी
संवत्सरी पर्व उद्धार करेगा, नवजीवन संचार करेगा।
जो जन इसका सम्मान करेगा, भवसागर को पार करेगा।
इसी पर्व से मिलेगा सब को, मुक्ति का वरदान।…………
भेदभाव विवादों को दूर जैन समाज के वीर विचाऱो।
मानव जीवन व्यर्थ न हारो, संवत्सरी पर प्रतिज्ञा धाऱो।
मतभेद को नहीं होने देंगे मनभेद मिलकर विचारों।………..
कर्मों के बन्धन तोड़ो,मोह और ममता को छोड़ो।
सामाजिक बुराईयों से पीछे हट कर, जिनशासन से नाता जोड़ों।
स्वतन्त्र पावन पर्व को लौकिक न बनाओ, SMSत्योहार से बचाओ।
स्वतन्त्र जैन जालन्धर
आज हम सब भावात्मक क्षमायाचना संदेश SMS द्वारा प्रेषित कर रहे हैं।क्या हम अपनी क्रोधाग्नि शांत कर पाऐ,तप जप भी किया आगमवाणी भी श्रवण की, चातुर्मास भी इतिहासक रहा, क्या यही जीओ और जीने दो है?

दलितपापतमोवितानम

विश्व के समस्त धर्मों में अपने अपने ढ़ंग से खुदा, प्रभु, ईश्वर,गोड के नाम से स्मरण किया जाता है। कोई अपनी मनोकामना एवं स्वार्थ अथवा अपने सुख दुःख के कारण याद करता है। जीवन में आने वाले सभी झमेले हमारे अपने निमंत्रण दिये हुए हैं जो हम अपने पूर्व जन्मों में देकर आऐ है,उनका भी समय सीमा होती है और वह नियमित समय पर अपना प्रभाव दिखाते हैं परन्तु हम अपना दोष न समझ कर अन्य किसी को जुम्मे वार ठहराते हैं जिससे पापकर्म और बढ़ जाता है। निवारण के लिए हमें दलितपापतमोवितानम का जाप करना चाहिए जिसका अर्थ है पापमयी अन्धकार से मुक्त (निकालो)करो।जो हमारे पूर्व जन्मों का प्रायश्चित है। यह आचार्य मानतुंग रचित भक्तामर स्तोत्र के प्रथम काव्य की दूसरी पंक्ति का शब्द है।
स्वतंत्र जैन जालन्धर
9855285970
5/9/2021

जली हुई कढवी रोटी कड़वे वचन

विश्व विख्यात मिसाइल मैन जो भारत के राष्ट्रपति पद को भी सुशोभित कर चुके हैं का जन्म एक साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ।वह बहुत मृदुभाषी थे। उनके जीवन की एक घटना ने मृदुभाषी बनाया जो इस प्रकार है,जब वह पांच छः वर्ष के होंगें, अम्मा खाना बना रही थी मैं और अब्बा अपनी अपनी थाली में खाना खा रहे थे कि एक रोटी कड़वी जली हुई अम्मा ने अब्बा की थाली में रख दी। मैं देख रहा था कि अब्बा अम्मा को कुछ कहेंगे परन्तु आराम से खा रहे हैं खाने के बाद अब्बा से पूछा आप कड़वी रोटी खा ली और अम्मा को कुछ नहीं कहा, बेटा कुछ कहता तो कड़वा कहता, कड़वी रोटी खाने के बाद पानी पीलिया मुंह साफ हो गया,यदि कड़वा शब्द बोल देता तो तेरी अम्मी को जीवन भर खटकता, हो सकता है हमारे जीवन में खटास आ जाती जो जन्मों जन्मों तक रहती।कभी किसी की गलती पर गुस्सा नहीं करना। उन्होंने ने इस बात को अपनी जागीर समझ अपने हृदय में रख लिया।जब वह प्रयोग शाला में काम करते तब अनेकों वैज्ञानिक काम करते कुछ गलतियां करते थे तो मुझे अब्बा याद आ जाते मैं उनके किये काम को ग़लत न कहकर ढ़ंग बदलने की जरूरत समझी, जिससे मुझे अथाह प्यार मिला और मृदुभाषी बना। देश का राष्ट्रपति बना तो देश के सभी धर्म मेरे हो गये।
यह है महान पुरुषों के महान विचारधारा।
ऐसा ही मिलता जुलता किस्सा देश के प्रतिष्ठित उद्योग पति श्री रतन टाटा का है।
जैन धर्म के पर्युषण पर्व चल रहे हैं जप-तप भी हो रहा है गुरुओं द्वारा आगमवाणी भी श्रवण की जा रही है,सम्वतसरी पर व्यक्तिगत सामाजिक क्षमायाचना भी होगी, क्या कड़वाहट दूर होगी।!
स्वतन्त्र जैन जालन्धर
9855285970